गुरुवार, 20 फ़रवरी 2025

बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले - भवानी प्रसाद मिश्र

~ लेखक परिचय ~

लेखक :- भवानी प्रसाद मिश्र


भवानीप्रसाद मिश्र एक महान कवि और लेखक थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनका जन्म 29 मार्च 1913 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में हुआ था। वे गांधीवादी विचारक थे और उनकी कविताओं में गांधी दर्शन का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है । उनकी कविताओं में सहजता, लयकारी, और गेयता का अद्भुत मेल देखने को मिलता है। उन्हें 'कवियों का कवि' और 'कविता का गांधी' भी कहा जाता है । उनकी प्रमुख कृतियों में 'गीत फरोश', 'चकित है दुख', 'बुनी हुई रस्सी', और 'त्रिकाल सन्ध्या' शामिल हैं । उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मश्री से सम्मानित किया गया है ।

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कविता

 बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले,

उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले

उनके ढंग से उड़े,, रुकें, खायें और गायें

वे जिसको त्यौहार कहें सब उसे मनाएं


कभी कभी जादू हो जाता दुनिया में

दुनिया भर के गुण दिखते हैं औगुनिया में

ये औगुनिए चार बड़े सरताज हो गये

इनके नौकर चील, गरुड़ और बाज हो गये.


हंस मोर चातक गौरैये किस गिनती में

हाथ बांध कर खड़े हो गये सब विनती में

हुक्म हुआ, चातक पंछी रट नहीं लगायें

पिऊ-पिऊ को छोड़े कौए-कौए गायें


बीस तरह के काम दे दिए गौरैयों को

खाना-पीना मौज उड़ाना छुट्भैयों को

कौओं की ऐसी बन आयी पांचों घी में

बड़े-बड़े मनसूबे आए उनके जी में


उड़ने तक तक के नियम बदल कर ऐसे ढाले

उड़ने वाले सिर्फ़ रह गए बैठे ठाले

आगे क्या कुछ हुआ सुनाना बहुत कठिन है

यह दिन कवि का नहीं, चार कौओं का दिन है


उत्सुकता जग जाए तो मेरे घर आ जाना

लंबा किस्सा थोड़े में किस तरह सुनाना ?

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